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Wednesday 22 August 2012

चौहान वंश-वंशावली-चह्वान (चतुर्भुज)

"चार बांस चौबीस गज, अष्ट अंगुल प्रमाण
ता ऊपर सुलतान है, मत चूके चौहान"

-संजीव चौहान-
अग्निवंश के सम्मेलन कर्ता ऋषि
.वत्स ऋषि
२.भार्गव ऋषि
३.अत्रि ऋषि
४.विश्वामित्र ऋषि
५.चमन ऋषि
विभिन्न ऋषियों ने प्रकट होकर अग्नि में आहुति दी। आहूति से चार वंश की उत्पत्ति हुयी।
१.पाराशर ऋषि-
ने प्रकट होकर आहुति दी। इस आहुति से परिहार की उत्पत्ति हुयी। पाराशर गोत्र।
२.वशिष्ठ ऋषि-
की आहुति से परमार की उत्पत्ति हुयी। वशिष्ठ गोत्र
३.भारद्वाज ऋषि-
ने आहुति दी। सोलंकी की उत्पत्ति हुयी। भारद्वाज गोत्र
नीमराना में पृथ्वी राज चौहान का किला
४.वत्स ऋषि-
ने आहुति दी। चतुर्भुज चौहान की उत्पत्ति हुयी। वत्स गोत्र।
चौहान की उत्पत्ति आबू शिखर में हुयी।
 दोहा-
चौहान को वंश उजागर है,
जिन जन्म लियो धरि के भुज चारी,
बौद्ध मतों को विनास कियो
और विप्रन को दिये वेद सुचारी॥
चौहान की कई पीढियों के बाद अजय पाल जी महाराज का जन्म हुआ। अजयपाल जी ने आबू पर्वत छोड कर अजमेर शहर बसाया। अजमेर में पृथ्वी तल से १५ मील ऊंचा तारागढ किला बनाया। जिसकी वर्तमान में १० मील ऊंचाई है। महाराज अजयपाल जी चक्रवर्ती सम्राट हुये। इसी में कई वंश बाद में माणिक देव जू  हुये। माणिक जी ने सांभर झील बनवाई थी ।
सांभर बिन अलोना खाय,
माटी बिके यह भेद कहाय।।
इनकी बहुत पीढियों के बाद माणिक देव जू उर्फ़ लाखन देव जू हुये। इनके चौबीस पुत्र हुये। और इन्हीं के नाम से २४ शाखायें चलीं। चौबीस शाखायें इस प्रकार से हैं।
१. मुहुकर्ण जी उजपारिया या उजपालिया चौहान पृथ्वीराज का वंश।
२. लालशाह उर्फ़ लालसिंह मदरेचा चौहान। मद्रास में बसे हैं।
३. हरि सिंह जी धधेडा चौहान। बुन्देलखंड और सिद्धगढ़ में बसे हैं।
४. सारदूलजी सोनगरा चौहान। जालोर झन्डी ईसानगर में बसे है
५. भगत राज जी निर्वाण चौहान। खंडेला से बिखराव
६. अष्टपाल जी हाडा चौहान कोटा बूंदी गद्दी सरकार से सम्मानित २१ तोपों की सलामी।
७. चन्द्रपाल जी भदौरिया चौहान। चन्द्रवार भदौरा गांव नौगांव जिला आगरा।
अजमेर में पृथ्वी राज चौहान का किला
८. चौहिल जी चौहिल चौहान। नाडौल मारवाड बिखराव हो गया .
९. शूरसेन जी देवडा चौहान सिरोही (सम्मानित)।
१०. सामन्त जी साचौरा चौहान। सन्चौर का राज्य टूट गया
११. मौहिल जी मौहिल चौहान। मोहिल गढ़ का राज्य टूट गया।
१२. खेवराज जी उर्फ़ अंड जी वालेगा चौहान। पटल गढ़ का राज्य टूट गया बिखराव।
१३. पोहपसेन जी पवैया  चौहान। पवैया गढ़ गुजरात
१४. मानपाल जी मोरी चौहान।  चान्दौर गढ़ की गद्दी।
१५.  राजकुमार जी चौहान। बालोरघाट जिला सुल्तानपुर में।
१६. जसराज जी जैनवार चौहान। पटना बिहार गद्दी टूट गयी।
१७. सहसमल जी वालेसा चौहान। मारवाड गद्दी।
१८. बच्छराज जी बच्छगोत्री चौहान। अवध में गद्दी टूट गयी।
१९. चन्द्रराज जी चन्द्राणा चौहान। अब यह कुल खत्म हो गया है।
२०. खनगराज जी कायमखानी चौहान।झुन्झुनू में हैं। गद्दी टूट गयी है। मुसलमान बन गये हैं।
२१. हर्राजजी जावला चौहान। जोहरगढ़ की गद्दी थी। गद्दी टूट गयी।
२२. धुजपाल जी गोखा चौहान। गढददरेश में जाकर रहे।
२३. किल्लनजी किशाना चौहान। किशाना गोत्र के गूजर। बाद में बांदनवाडा अजमेर में हैं।
२४. कनकपाल जी। कटैया चौहान। सिद्धगढ़ में गद्दी (पंजाब)।
उपरोक्त प्र-शाखाओं में अब करीब १२५ हैं।
बाद में आना देवजू पैदा हुये। आना देवजू के सूरसेन जी और दत्तकदे वजू पैदा हुये। सूरसेन जी के ढोडेदेवजी हुये, जो ढूढाड प्रान्त में था। यह नरमांस भक्षी भी थे। ढोडे देवजी के—
चौरंगी, सोमेश्वरजी और कान्हदेवजी हुये
सोमेश्वरजी को चन्द्रवंश में उत्पन्न अनंगपाल की पुत्री कमला ब्याही गयीं थीं।
सोमेश्वरजी के पृथ्वी राज जी हुये। पृथ्वी राज जी के रेनसी कुमार, जो कन्नौज की लडाई मे मारे गये, अक्षय कुमार जी जो, महमूद गजनवी के साथ लडाई मे मारे गये, बलभद्र जी गजनी की लडाई में मारे गये, इन्द्रसी कुमार, जो चन्गेज खां की लडाई में मारे गये।
पृथ्वीराज ने अपने चाचा कान्हा देवजी का लड़का गोद लिया। जिसका नाम राव हम्मीर देवजू था। हम्मीर देवजू के-दो पुत्र हुये-
राव रतन जी और खान वालेसी जी। राव रतन सिंह जी ने नौ विवाह किये राव रतन जी के अठारह संतान हुईं। सत्रह पुत्र मारे गये। एक पुत्र चन्द्र सेनजी और चार पुत्र बांदियों के रहे। खानवालेसी जी हुये जो नेपाल चले गये और सिसौदिया चौहान कहलाये।
रावरतन देवजी के पुत्र संकट देवजी हुये। संकटदेव जी के छ: पुत्र हुये।
१. धिराज जू । जो रिजोर एटा में जाकर बसे।  इन्हे राजा रामपुर की लडकी ब्याही गयी थी।
२. रणसुम्मेर देवजी। जो इटावा खास में जाकर बसे।  और बाद में प्रतापनेर में जा बसे।
३. प्रताप रुद्रजी। जो मैनपुरी में बसे
४. चन्द्रसेन जी चकर नगर (इटावा) में जाकर बसे।
५. चन्द्रशेव जी। चन्द्रकोणा (आसाम) में जाकर बसे। इनकी आगे की संतति में सबल सिंह चौहान हुये, जिन्होने महा-भारत पुराण की टीका लिखी।
मैनपुरी
में बसे राजा प्रताप रुद्रजी के दो पुत्र हुये-
१.राजा वीर सिंह जू देव, जो मैनपुरी में ही बस गये
२. धारक देवजू, जो पतारा क्षेत्र में जाकर बसे।

मैनपुरी के राजा वीर सिंह जू देव के चार पुत्र हुये

१. महाराजा धीरशाह जी। इनसे मैनपुरी के आसपास के गांव बसे
२. राव गणेशजी, जो एटा के पास गंज डुडवारा में जाकर बसे। इनके २७ गांव पटियाली आदि हैं।
३. कुंअर अशोकमल जी के गांव उझैया अशोकपुर फ़कीरपुर आदि हैं।
४. पूर्णमल जी, जिनके सौरिख सकरावा जसमेडी आदि गांव हैं।
महाराजा धीरशाह जी के तीन पुत्र हुये-
१. भाव सिंह जी, जो मैनपुरी में बसे
२. भारतीचन्द जी, जिनके नोनेर कांकन सकरा उमरैन दौलतपुर आदि गांव बसे
२. खान देवजू, जिनके सतनी नगलाजुला पंचवटी के गांव हैं
खानदेव जी के- भाव सिंह जी हुये।
भावसिंह जी के देवराज जी हुये।
देवराज जी के धर्मांगद जी हुये।
धर्मांगद जी के तीन पुत्र हुये
१. जगतमल जी, जो मैनपुरी मे बसे २. कीरत सिंह जी जिनकी संतति किशनी के आसपास है।
३. पहाड सिंह जी, जो सिमरई सहारा औरन्ध आदि गावों के आसपास हैं।



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